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महावीर स्वामी जी का दीपदान उत्सव क्यों मनाया जाता है

1. महावीर स्वामी जी निर्वाण दिवस (मोक्ष प्राप्ति)

जैन धर्म के अनुसार, महावीर स्वामी को कार्तिक अमावस्या यानि के (दीवाली के दिन) निर्वाण प्राप्त हुआ था — यानि के उन्होंने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाई थी।
  • जब महावीर स्वामी जी का निर्वाण हुआ, तब गहन अंधकार छा गया था।
  • उस समय उनके अनुयायियों और राजा चन्द्रगुप्त मौर्य जी ने हजारों दीपक जलाए थे ताकि यह दिखाया जा सके कि “प्रकाश (ज्ञान) कभी समाप्त नहीं होता है।”
तभी से यह दिन दीपदान उत्सव (यानि के दीवाली) कह लाया — यानि के महावीर स्वामी के ज्ञान रूपी प्रकाश को फैलाने के लिए दीप जलाना।

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मतलब:
  • दीप जलाना यहाँ सिर्फ परंपरा नहीं है, बल्कि ज्ञान, सत्य और आत्मशुद्धि का प्रतीक भी है।
  • गौतम बुद्ध जी और दीपदान उत्सव

2. बौद्ध धर्म में दीपदान की परंपरा

बौद्ध धर्म में “दीपदान” का अर्थ यह है की ज्ञान का प्रकाश फैलाना है।
गौतम बुद्ध ने लोगों को सिखाया कि “अंधकार (अज्ञान) केवल और केवल ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है।”
इसलिए बौद्ध धर्म के अनुयायी दीपदान उत्सव पर मंदिरों और विहारों में दीप जलाते हैं, जिससे शांति और करुणा व ज्ञान का संदेश फैले।

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3. विदेशों में दीपदान पर्व

श्रीलंका, नेपाल, जापान, थाईलैंड आदि में बौद्ध धर्म के लोग “दीपमालिका” या “थुप दीपोत्सव” के रूप में इस पर्व को मनाते हैं।
यह दिन बौद्ध धर्म के प्रकाश का उत्सव माना जाता है।

संक्षेप में:

बौद्ध धर्म कारण संदेश
  • जैन धर्म महावीर स्वामी जी का निर्वाण (मोक्ष) आत्मज्ञान और मुक्ति का प्रकाश है
  • बौद्ध धर्म बुद्ध के उपदेशों का स्मरण अज्ञान पर ज्ञान की विजय प्राप्त करना

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Blogs Writer by Abhi Samrat